डूबे खेत, अटूट जज़्बा: पंजाब की हिम्मत की कहानी
- SikhsForIndia

- 9 सित॰
- 3 मिनट पठन

यह कहानी गुरदासपुर से शुरू होती है। बाढ़ के पानी को चीरती हुई एक नाव आगे बढ़ती है। नाव में बैठे बच्चे—कुछ केवल दस साल के—दो दिनों तक फँसे रहने के बाद अपने आवासीय स्कूल से बचाए गए हैं। उनके पीछे भारतीय सेना के जवान नाव को थामे हुए हैं—भीग चुके, थके हुए, लेकिन कर्तव्य से ज़रा भी पीछे नहीं हटे। किनारे पर खड़ी माताएँ राहत के आँसुओं के साथ सैनिकों के हाथ पकड़ लेती हैं और धीरे से “वाहेगुरु” का जाप करती हैं।
यह है पंजाब, 2025 की बाढ़ में: तबाह ज़रूर, लेकिन टूटा नहीं।
बाढ़ का कहर
वो नदियाँ जिन्होंने सदियों से पंजाब को पोषित किया, इस साल विकराल हो उठीं। दशकों की सबसे भयानक बाढ़ों में से एक में पानी ने बाँध तोड़े, खेतों, घरों और गाँवों को डुबो दिया। लेकिन प्रकृति के इस प्रकोप के बीच भी पंजाब ने दुनिया को दिखा दिया कि उसकी आत्मा को कोई नहीं तोड़ सकता।
1400 से अधिक गाँव प्रभावित हुए, लाखों एकड़ खेत जलमग्न हो गए और दर्जनों ज़िंदगियाँ बाढ़ की भेंट चढ़ गईं। परिवार उजड़ गए, और वे फ़सलें जो पूरे देश को भोजन देतीं, बह गईं। फिर भी इस विनाश के बीच पंजाब की मज़बूती उस बाढ़ से भी ज़्यादा चमकती रही जो उसे डुबो देना चाहती थी।
सिख किसान के लिए ज़मीन से रिश्ता पवित्र है। जब खेत डूब गए, दर्द गहरा था—लेकिन उसी के साथ था संकल्प: फिर से बोना है, फिर से उगाना है, और और भी मज़बूत होकर लौटना है।
भारत के वर्दीधारी रक्षक
सबसे पहले पहुँचे देश के वर्दीधारी रक्षक।
गुरदासपुर में सेना और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) ने 400 से अधिक छात्रों और स्टाफ़ को डूबे हुए स्कूल से सुरक्षित निकाला।
अमृतसर की सीमा से लगे गाँवों में सैनिकों ने चार युवाओं को बचाया जो घंटों पेड़ से लटके रहे, बस एक क़दम और वे पाकिस्तान की तरफ़ बह जाते।
फ़िरोज़पुर में बीएसएफ़ के जवानों ने ग्रामीणों को नावों में बिठाकर सुरक्षित पहुँचाया, बुज़ुर्गों को कंधे पर उठाया और पशुओं को छाती-भर पानी में ले गए।
अब तक 6600 से अधिक लोगों को पूरे पंजाब में सुरक्षित निकाला जा चुका है।
ये सिर्फ़ आँकड़े नहीं, बल्कि जीवन की डोर हैं। हर नाव, हर हेलिकॉप्टर से गिरा भोजन पैकेट, हर जवान जिसने बाढ़ में घंटों डटे रहकर किसी परिवार तक पहुँचा—ये सब इस सच्चाई का सबूत हैं कि पंजाब अकेला नहीं है।
दुःख में सेवा
अगर सेना ने ताक़त दी, तो पंजाब ने आत्मा। गुरुद्वारे रातों-रात राहत शिविर बन गए, लंगरों में हज़ारों को रोज़ाना भोजन मिला। स्वयंसेवकों ने ट्रैक्टरों और रस्सियों से अस्थायी राहत प्रयास चलाए। गाँव-गाँव में सिखों की सेवा की भावना मज़बूती से खड़ी रही—दुनिया को याद दिलाते हुए कि संकट में भी पंजाब पहले बाँटता है, फिर माँगता है।
अमृतसर के पास के एक गाँव में लोगों ने बताया कि किस तरह गुरुद्वारे ने न सिर्फ़ उन्हें भोजन दिया बल्कि उनके मवेशियों को भी शरण दी। एक किसान बोला, “घर तो चला गया, पर संगत ने हमारी रूह बचा ली।”
नेतृत्व और ज़िम्मेदारी
पंजाब सरकार ने किसानों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा घोषित किया और “जिसदा खेत, उसदी रेत” नीति लागू की, जिससे किसान अपने खेतों में आई रेत को वापस निकाल सकें। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 9 सितंबर की यात्रा और हवाई सर्वे ने यह संदेश दिया कि पंजाब का दर्द सिर्फ़ पंजाब का नहीं, बल्कि पूरे भारत का है।
राहत शिविर, चिकित्सक दल और स्वच्छता अभियान तेज़ किए जा रहे हैं ताकि बाढ़ के बाद बीमारी न फैले। बड़े केंद्रीय सहयोग की माँग उठ रही है, लेकिन साथ ही ये भी मान्यता है कि पुनर्निर्माण की नींव रख दी गई है।
सिख जज़्बा: विपत्ति में मज़बूती
जब पानी बढ़ा, सिख स्वयंसेवक भी साथ बढ़े। जब घर डूबे, लंगरों ने भूख मिटाई। जब निराशा छाई, कीर्तन ने आत्मा को सहारा दिया। यही है पंजाब का तरीका—विपत्ति को साहस और करुणा के अवसर में बदल देना।
जलमग्न गुरुद्वारों पर लहराता निशान साहिब अब प्रतीक बन गया है: पानी चाहे कितना भी बढ़े, पंजाब का गर्व और उसकी शान उससे ऊँची ही रहेगी।
राष्ट्र के लिए संदेश
इस त्रासदी ने दुनिया को दिखा दिया कि पंजाब कोई शिकार नहीं—वह योद्धा है। और जब पंजाब लड़ता है, तो भारत उसके साथ खड़ा होता है।
यह बाढ़ हमारी नाज़ुकताओं की याद दिलाती है, लेकिन हमारी एकता का सबूत भी देती है। यह ढाँचों की परीक्षा है, लेकिन उससे भी ज़्यादा हमारी मज़बूती की। पंजाब चुनौतियों के आगे झुकता नहीं, उनका सामना करता है—आस्था, जज़्बे और सामूहिक संकल्प से।



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