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बेअदबी का भ्रम: पंजाब में धार्मिक अपमान और अलगाववाद

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लेखक: निजेश एन, शोध सहयोगी; इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट

मूल प्रकाशन: [यह लेख मूल रूप से सेकंड साइट द्वारा 13 अक्टूबर 2025 को https://www.satp.org/second-sight-volume-2-no-38 पर प्रकाशित किया गया था]


7 अक्तूबर 2025 को मनजीत सिंह, जिसे बिल्ला के नाम से भी जाना जाता है, ने जम्मू और कश्मीर के सांबा ज़िले के कौलपुर गाँव में स्थित गुरुद्वारा सिंह सभा में गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप को आग लगाने की कोशिश की। पुलिस ने उसे अगले दिन गिरफ्तार कर लिया, लेकिन गुस्साए स्थानीय सिखों ने उसके घर को जला कर नष्ट कर दिया। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गाज ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद सभी गुरुद्वारा पदाधिकारियों और प्रबंधक समिति सदस्यों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया और दो अन्य संदिग्ध व्यक्तियों की गिरफ्तारी की मांग की।


बेअदबी का मुद्दा और उसका राजनीतिक दुरुपयोग

बेअदबी (धार्मिक अपमान) की अवधारणा को पिछले कुछ वर्षों में भारत और प्रवासी सिख समुदायों में सक्रिय खालिस्तानी समूहों द्वारा साम्प्रदायिक तनाव भड़काने और अपने अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। कौलपुर की घटना उसी पैटर्न का हिस्सा है जिसकी शुरुआत 2015 के बरगाड़ी बेअदबी मामले (ज़िला फरीदकोट, पंजाब) से हुई थी। उस मामले में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के बाद बेहबल कलां में पुलिस फायरिंग हुई, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। इसके बाद पंजाब और चंडीगढ़ की अदालतों में कई अन्य बेअदबी के मामले दर्ज हुए, जिनमें से कई अब भी विचाराधीन हैं। 2015 के बाद से बरगाड़ी मामले के दो दर्जन से अधिक आरोपियों में से चार की हत्या विदेशों में सक्रिय प्रॉ-खालिस्तानी संगठनों या उनसे जुड़े अपराधियों द्वारा की जा चुकी है।


अपराध के आँकड़े और कानूनी प्रतिक्रिया

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े बताते हैं कि पंजाब में बेअदबी से संबंधित अपराध एक स्थायी समस्या बने हुए हैं। 2018 से 2023 के बीच, भारतीय दंड संहिता की धाराओं 295 से 297 के तहत पंजाब ने सबसे अधिक मामले दर्ज किए। 2018 में 202, 2019 में 180, 2020 में 165, 2021 में 189, 2022 में 205 और 2023 में 194 मामले दर्ज हुए। इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप, 15 जुलाई 2025 को पंजाब विधानसभा ने पंजाब प्रिवेंशन ऑफ ऑफेंसिज़ अगेंस्ट होली स्क्रिप्चर्स बिल, 2025 पारित किया, जिसमें बेअदबी के लिए दस साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान है। इस बिल पर विचार-विमर्श के लिए 15 सदस्यीय समिति का गठन किया गया है जो छह महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।


सरकारों की नाकामी और जन आक्रोश

लगातार पंजाब की सरकारों को बेअदबी मामलों में कमजोर कार्रवाई के लिए आलोचना झेलनी पड़ी है। कई जांचें अधूरी रह गईं और कई मामलों में आरोपियों को “मानसिक रूप से असंतुलित” बताकर मामला कमजोर किया गया। कई बार भीड़ या आपराधिक गिरोहों ने आरोपियों की अदालत में सुनवाई से पहले ही हत्या कर दी, जिससे “खुद-न्याय” की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला। इन हत्याओं को अक्सर “तुरंत न्याय” के रूप में सही ठहराया गया और दोषियों को गुरुद्वारों या पंथिक संगठनों द्वारा सम्मानित भी किया गया, जिससे यह चक्र और गहराता गया।


राजनीतिक दोहन और चुनावी फ़ायदा

चरमपंथी राजनीतिक समूहों ने इन घटनाओं का इस्तेमाल अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया है। सरबजीत सिंह, जो बेअंत सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक) का पुत्र है, ने पिछला आम चुनाव फरीदकोट से जीतकर संसद में प्रवेश किया। उसने अपना पूरा चुनाव प्रचार 2015 की बेअदबी घटना पर केंद्रित किया और न्याय में देरी से उत्पन्न जन आक्रोश का लाभ उठाया।


प्रो-खालिस्तानी समूहों का प्रचार और विदेशों से जुड़ाव

प्रो-खालिस्तानी समूह बेअदबी की घटनाओं को “हिंदू प्रभुत्व के तहत सिख पीड़ा” के नैरेटिव के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ये समूह, जो प्रवासी नेटवर्क और पंजाब के अपराधियों से जुड़े होते हैं, इन घटनाओं को भारतीय राज्य द्वारा सिख धर्म को कमजोर करने की साज़िश के रूप में पेश करते हैं। यह प्रवृत्ति 1980 के दशक के खालिस्तानी आंदोलन की याद दिलाती है, जब हर बेअदबी घटना को प्रतिद्वंद्वी समुदायों या राज्य की साज़िश बताया जाता था। डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से यह प्रचार आज प्रवासी सिख समुदायों में “घेराबंदी मानसिकता” को बढ़ावा देता है। यह आक्रोश विदेशों में भारतीय दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शन, धन संग्रह और विदेशी सरकारों पर दबाव बनाने के प्रयासों को बढ़ावा देता है।


विदेशी खालिस्तानी संगठनों की चयनात्मक संवेदना

खालिस्तानी प्रवासी संगठन खुद को सिख धर्म के रक्षक के रूप में पेश करते हैं, लेकिन वे विदेशों में सिखों के साथ होने वाले भेदभाव या पाकिस्तान जैसे देशों में सिख अल्पसंख्यकों के जबरन धर्म परिवर्तन के मामलों को अनदेखा करते हैं। उनका ध्यान केवल भारत-विरोधी प्रचार पर रहता है। यहां तक कि अमेरिकी सेना द्वारा दाढ़ी पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंध जैसे धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन भी उनकी चर्चा में शामिल नहीं होते।


बेअदबी का दुरुपयोग और आवश्यक कार्रवाई

बेअदबी की घटनाओं का दुरुपयोग सिख पहचान को तोड़ने और साम्प्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए किया जा रहा है, जो पाकिस्तान की “हज़ार कटों से भारत को कमजोर करने” की नीति से मेल खाता है। इसे रोकने के लिए पंजाब की संस्थाओं को सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। बेअदबी मामलों की निष्पक्ष जांच, त्वरित न्याय और जवाबदेही को सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक है ताकि खुद-न्याय और अलगाववादी प्रचार को रोका जा सके।


सामाजिक एकता को मजबूत करना, कानून के शासन को बनाए रखना और हर बेअदबी मामले की तथ्यों पर आधारित गहन जांच करना ही पंजाब और क्षेत्र में स्थिरता और शांति सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।

 
 
 

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सरबत दा भला

ਨਾ ਕੋ ਬੈਰੀ ਨਹੀ ਬਿਗਾਨਾ, ਸਗਲ ਸੰਗ ਹਮ ਕਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥
"कोई मेरा दुश्मन नहीं है, कोई अजनबी नहीं है। मैं सबके साथ मिलजुलकर रहता हूँ।"

ईमेल : admin@sikhsforindia.com

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